
कश्मीर के प्रतिष्ठित हज़रतबल दरगाह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें कुछ लोग एक पट्टिका तोड़ते नजर आ रहे हैं, जिस पर भारत का नेशनल एंब्लेम (सिंहचिह्न) अंकित था।
बस फिर क्या था — ट्विटर से लेकर टी.वी. तक, सबने इस वीडियो को अपने-अपने “राजनीतिक फ्रेम” में फिट करना शुरू कर दिया।
खटाना बोले: “मुसलमानों के नाम पर मुसलमानों को नुकसान दिया गया!”
बीजेपी सांसद ग़ुलाम अली खटाना ने मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस पर तीर चला दिया।
उन्होंने कहा:
“कांग्रेस और NC ने मुसलमानों के नाम पर मुसलमानों को ही धोखा दिया। अब वक्त है हिकमत और जज़्बात में बैलेंस बनाने का।”
और हां, सरकारी पैसे से लगे एंब्लेम को तोड़ना?
खटाना जी के शब्दों में:
“यह कांग्रेस और NC की साज़िश है…
Translation:
“जनता उलझे, सियासत चमके!”
उमर अब्दुल्ला का सवाल: “एंब्लेम क्यों लगाया गया?”
नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी मैदान में एंट्री ली, और सरकार से सवाल किया कि:
“मज़हबी स्थल पर इस तरह का एंब्लेम लगाना क्या वाकई ज़रूरी था?”
उमर का मानना है कि किसी की धार्मिक भावनाओं से खेलने का हक किसी को नहीं, और अगर गलती हुई है, तो कम से कम “माफ़ी” तो बनती है।
सियासी स्कोरकार्ड पर उमर ने सीधा सवाल दागा:
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एंब्लेम क्यों?
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नया पत्थर क्यों?
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और पुराना भावनाओं वाला सिस्टम क्यों बदला?
सियासत में एंब्लेम का ‘इमोशनल वैल्यू एडिशन’
नेशनल एंब्लेम, यानी भारत का सिंहचिह्न, संविधान की पहचान है। लेकिन जब यह किसी धार्मिक स्थल के बाहर लगे, तो लोगों के जज़्बात भी भड़क सकते हैं — और यही हुआ।
कुछ लोगों को लगा कि “सरकार मज़हबी जगह पर दखल दे रही है”, और जवाब में कुछ लोगों को लगा कि “कानून का अपमान हो गया है”।
और इस बीच… राजनीति ने फिर वही किया जो वो करती है — मुद्दे को माइक्रोफोन बना दिया।
धार्मिक स्थल + राजनीति = ट्विटर ट्रेंडिंग गारंटीड!
अब सवाल सिर्फ यह नहीं कि पट्टिका क्यों लगी या क्यों टूटी — सवाल यह है कि हर बार धार्मिक स्थान ही सियासी ब्रेकिंग न्यूज़ क्यों बनते हैं?
हर सियासी पार्टी इस मुद्दे को “जज़्बातों का सवाल” बनाकर भुना रही है — जैसे बुलेटिन्स में भावनाएं बिकती हों और चुनावों में वीडियो क्लिप्स से वोट मिलते हों।
राजनीति में जोड़ तोड़ चालू है
“वो एक पट्टिका क्या टूटी, पूरा सियासी माहौल ही दो टुकड़ों में बंट गया – धर्म बनाम संविधान!”
जिस एंब्लेम की इज़्ज़त पर बहस हो रही है, शायद वही सिंहचिह्न हंस रहा होगा,
“मुझे संसद से सुप्रीम कोर्ट तक रखा गया — अब मुझे दरगाह के बाहर रखकर भी तोड़ लिया गया!”
पत्थर टूट गया, लेकिन क्या भरोसा भी टूटा?
इस पूरे मामले से एक बात साफ है — “धर्म और राजनीति का कॉकटेल” एक बार फिर जनता के सामने परोसा गया है।
और हां, अगर आप सोच रहे हैं कि आख़िर सही कौन है?
तो जवाब बहुत सिंपल है:
“जो वोट में जीतेगा, वही ‘एंब्लेम’ का असली वारिस होगा।”
“सिर्फ खांसी नहीं, जानलेवा हो सकता है ‘फेफड़ों में पानी भरना’!”